Saturday, December 25, 2010

PARVIN ALLAHABADI

PARVIN ALLAHABADI


वाह रे खुदा
तेरी इस करिश्में का जवाब नहीं .
तू क्या चीज़ बनाता है
किसे को राम बनाता है
किसे को रहीम बनाता है

तू ही इंसान बनता है
तू ही इंसान बनता है
और तू ही , कभी कभी शैतान भी बनाता है ,

लोगो ने तोह कहा है
ताजमहल शाह्जहा ने मुमताज़ के लिए बनाया था,
लोगो ने तोह कहा है
ताजमहल शाह्जहा ने मुमताज़ के लिए बनाया था

पर शायद लोग यह भूल गए
ताज महल भी , तेरे रहनुमाई के बगैर मुमकिन ना हुआ होगा.

वाह रे खुदा
तेरी इस करिश्में का जवाब नहीं .
तू क्या चीज़ बनता है,

कभी कभी ऐसे बोलते हुए तस्वीर बनाता है
कभी कभी ऐसे बोलते हुए तस्वीर बनाता है

माँ बनाता है, भाई भी बनाता है,
बहन भी बनता है ,
इंसान , हैवान और शैतान भी ,

ज़न्नत भी तू ही नसीब कराता है
वजू करना भी तू हे सिखाता है
और बन्दों को तू झुकना सिखाता है ,

और अर्ज है
कभी कभी शायद ऐसे बोलते हुए तस्वीर भी बना जाता है
कभी कभी शायद ऐसे बोलते हुए तस्वीर बना जाता है

पर शायद, या अल्लाह कई अल्लाह्बादियो को बाप बनाना भूल जाता गया ,
पर शायद, या अल्लाह कई अल्लाह्बादियो को बाप बनाना भूल जाता गया ,
उनको भी ऐसे एक बेटी देना भूल जाता है
और जिन बाप को बेटी देता है
उनमे से कई बाप को रोटी देना भूल जाता है
रोटी देना भूल जाता है,

वाह रे खुदा
तेरी इस करिश्में का जवाब नहीं .
तू क्या चीज़ बनता है,

FROM THE POEM- वाह रे खुदा
PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA
परवीन अल्लाहबदी और महक सुल्ताना

Thursday, November 25, 2010

IF U R BAD , I CAN TRY BEING UR DAD

YES TRUST ME FRIENDS..its my OBSERVATION PAST 3 YEARS
only BAD PEOPLE PLAY BAD-MINTON.

people dont bring shuttle at all.
play more than 2 games at a time....schrew, wicked, cuning people want to play the game among Themselves.

REASONS:1)

They Feel there should be a level , the shuttle should move minimum 5 times before getting Dropped at any side.
maine 5 Baar ka Namazi suna hai, aur padha hai, 5 baar ka BADMINTON BAZI NAHEE SUNA.

2) OOOOFICE bhi jana hai, time pey BAD-MINTON BHI GROUP ME KHELNA HAI.
According to them Maza nahee aata hai unko
A maza ke liyee to bahut se cheeza hai, u decide ur choice.well mujhe to sabhi ke saath maza aata hai
3) Have u people paid extra for Ur Annual Membership charges.If yes than take the court , Booth capture the Court, hizak the court, Ruin the Court, and sleep with the Court..

4) I feel everyone has paid the same amount for single anual membership charges, Correct.THEN PLZZZ FOR GOD SAKE LEAVE COURT NO- 4, & can go to any other COURT OF LAW( Court no-1,2,3)or LAST BUT NOT LEAST.

5) IF u people leevl has increased to that extent Please Go to ay other club, thaere r many many other BAD-MINTON COURTS NEAR TO OUR PLACE.NEARSED ONE IN INDIRANGAR, OR MARATHALLI( rS 200 oNLY FOR 2 HOURS) SO rS 50 ONLY FOR PER HEAD.ENJOY BAD-MINTON AS MUCH AS U WANT.

6) OTHERWISE DIRECTLY pLAY IN kANTIVEERA BAD-MINTON INDOOR STADIUM, or play WITH PRAKASH PADUKONE SIR.

SORRY USKE LIYEE UPAR JANA PADEGA AAPKO.

OK PLAY WITH MODI SIR- SORRY AAP JAISE GANDE SOCH WALEY LOG NEY , HE WAS BRUTUALLY MURDERED( tHANKS TO HIS BEAUTIFUL WIFE).
OK LAST OPTION:

TRY PLAYING WITH SAAINA NEHWAL- SOOO SORRY SHE WILL NOT PLAY WITH U..

TUM LOG KI AUKAAT NAHEE HAI, TO PLAY WITH INTERNATIONAL LEVEL PLAYER, AN OLYMIPIAN GOLD MEDALIST, ALL INDIA BAD-MINTON , ALL ENGLAND BAD-MINTON RANK HOLDER .

guys the whole logic is .................

IF U R BAD , I CAN TRY BEING UR DAD


PARVIN ALLAHABADI

Monday, November 22, 2010

ये जा के उसको बताओ - कोई तो मुझे डॉ. मंजुला वत्स्य MAM से बचाओ

Someone Says:- "Missing someone when you are ALONE iz not 'Affection'... But, Thinking of someone even when you are BUZY iz called 'Real Relation'...!!" :-)




Allahabadi Got a Tropic in His Mind to write.



POEM- ये जा के उसको बताओ ***************

कोई तो मुझे डॉ. मंजुला वत्स्य MAM से बचाओ

POET- PARVIN ALLAHABADI



ये जा के उसको बताओ

कोई तो मुझे डॉ. मंजुला वत्स्य से बचाओ

(Consultancy)कंसल्टेंसी चार्ज देते-देते थक चुका हूँ ...



फ़ाइल पे फ़ाइल लिखती हैं...

और जूली, तेरे इस भाई को स्लाईट अब्नोर्मल( Slight abnormal) कहती हैं...

या तो मुझे मेरी झील दिलवाओ...

या डॉ. हरिवंश राय बच्चन साहब,

मुझको मेरी मधुशाला बतलाओ...



क्या सच में मेरी मधुशाला चल के आयेगी...!

या वो मुझको ठेंगा दिखलाएगी....

उसको भी तो settled , House owner, luxor चाहिए होगा...

मेरे पास तो अल्टो LXI है, (Woh Bhi PAPA ke Naam Pe Registered)

या तुम सब लोग मेरा राँची ( कांके) का टिकिट कटवाओ...

उधर जा के ही खेल खेलूंगा...

OffCoarse BAD-MINTON WALA

या तो मुझे मेरी झील दिलवाओ...

या डॉ. हरिवंश राय बच्चन साहब,

मुझको phir sey मेरी मधुशाला Dikhlayo...



बिन शेटल और कार्क के भी बेड-मिन्टन खेलूँगा...

नेट और पार्टनर नहीं भी रहे

अगले एशियाड मे भारत से भी,

बेड-मिन्टन मे एक गोल्ड रहेगा,



और दिल-ए-दर्द देखा...

बाप ना पाया तो क्या हुआ,

एक बाप बनने कि फीलिंग क्या होती है,

ना जान पाया तो क्या हुआ,

पूरे पागलखाने को ही अपनी औलाद बनाऊँगा,

और उन सब पे ही,

जी भर के अपना वात्सल्य लुटाऊँगा,



और हे अल्लाहाबदी,

जब लोग ये पूछेंगे...

इन सारे बच्चों की माँ कौन है.....?

तो मैं श्री हनुमान जी की तरफ हाथ दिखाऊँगा,

जब बिन बियाहा ब्रम्हचारी पिता बन सकते थे,

तो मैं विवाहित बाप क्यों नहीं बन सकता ....!

शायद पागलखाने के सारे लोग,

मेरी बात मान जायेंगे,

शायद पागलखाने के सारे लोग,

मेरी बात मान जायेंगे,

और जो ना माने , वो सारे खुद पागल कहलायेंगे.........

और बाद मे वो सारे के सारे,

मेरे ही पास पागलखाने आयेंगे.....

((Explanation- ranchi because there i have heard FOOD is Good.there, compared to Agra(now Shifted to bareilly),Hope there would have been one in bangalore. I luv Namma banguluru ))

-- प्रवीण अलाहबादी
POET- PARVIN ALLAHABADI

शायरी तो हम भी करते

शायरी तो हम भी करते


This particular Nazm is Dedicated to My wife, My Tuttee ( My Mulgi)



शायरी तो हम भी करते, अगर मुकमल मंजिल होते

शायरी टोह हम भी करते, अगर मुकमल मंजिल होते

एक घरोदा भी ना बस पाया तेरे बगैर



ईट और पत्थर से बना मकानों को घर नहीं कहते

ईट और पत्थर से बना मकानों को घर नहीं कहते



ईट और पत्थर से बना मकानों को घर नहीं कहते

जब तू ही नहीं मेरे ज़िन्दगी में, टोह यह शायरी किसके लिए

तेरे बगैर भी मेरे कोई मंजिल है

यह पता ही नहीं

मेरा तो घर ही टूट गया बसने से पहले



शायरी टोह हम भी करते, अगर मुकमल मंजिल होते

शायरी टोह हम भी करते, अगर मुकमल मंजिल होते



शायर- परवीन अल्लाहबदी & महक सुल्ताना


( There can be thousands of Mehek SULTANA)

ताजमहल में मुमताज़ नहीं है....

tHIS poem i have written on seeing someone beautiful face.


no she is not my RED HOUSE

I love my house, but the girl next door from pakistan.

dont know but 1 snap of hers made me write this lines.

neither the poet is a shanjanhan nor he is looking for any mumtaz.

its only imagination where the poet says that its been years i saw such a face.

mam u know that i ahve written this on you, since i have already commented on ur picture comments

आज समझा मोहब्बत की सबसे बड़ी निशानी

आज समझा मोहब्बत की सबसे बड़ी निशानी

मेरे वतन का ताजमहल अब तक मेरे वतन में ही है



मेरे वतन का ताजमहल अब तक मेरे वतन में ही है

शायद शहाजहां भी यहीं कहीं है

शायद शहाजहां भी यहीं कहीं है



मगर अब यहाँ मुमताज़ नहीं है

अब यहाँ मुमताज़ नहीं है.....



दो बार जंग जीत के भी क्या फायदा

दो बार जंग जीत के भी क्या फायदा

हमारे वतन में कोई ऐसी अब मुमताज़ नहीं है..

हाँ शायद हमारे वतन में कोई ऐसी मुमताज़ नहीं है..



आगरा भी यहीं

ताज भी यहीं

महल भी है...

शाहजहाँ भी यहीं कहीं...

पर अब शायद वहाँ,कोई मुमताज़ नहीं है...



चले गए हमको अब रुसवा करके

क्या हमारे वतन में एक भी ऐसी मुमताज़ नहीं है....!

क्या हमारे वतन में एक भी ऐसी मुमताज़ नहीं है....!

जंग जीत के भी क्या फायदा...

जब ताजमहल में मुमताज़ ही नहीं है....



-प्रवीण इलाहाबादी व महक सुल्ताना

To Be continued.............

POET- PARVIN ALLAHABADI &; MEHEK SULTANA


( there can be thousand of Mehek Sultana)

Friday, November 19, 2010

जब से देखा है तेरी .झील से आंखे,.......मैं जीना सीख गया हू




जब से देखा है तेरी .झील से आंखे,.......मैं जीना सीख गया हू
POET- PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA

तेरी सादगी में क्या बात थी
तेरे सादगी में क्या बात थी
वोह तो पुरी के पुरी अल्लाहाबाद थी

तेरी सादगी में क्या बात थी
तेरे सादगी में क्या बात थी
वोह तो पुरी के पुरी अल्लाहाबाद थी

तू ही गंगा, तू ही दुर्गा, तू ही थी वोह सावत्री
तू ही सीता, तू ही यशोदा, टू ही माता सबरी

तू ही इस एकलव्य के प्रेरणा
तू ही भीम की गदा
और तू ही थी वेदव्यास की कलम

टू हे थी सिकंदर का जूनून
तू हे थी गौरी के इतनी साहस
और मत्स्यगंधा की सुगंध भी तू

जिस मन में बसे चित्र का कोई नाम ना था
वोह तू ही थी
कभी सोचता था , जब काल्पनिक चित्र भी
जीवित हो सकते है
वोह कौन थी

वोह तू ही थी
मेरे लिया तो thames भी तू और ब्रह्मपुत्र भी
कावेरी और कृष्णा भी

भूगोल भी तू
इतहास भी टू
गणित भी टू
और राज्नितिसस्त्र भी

मेरे अपने दर्पण मे भी तू ही
और भीष्म के प्रतिज्ञा भी तू

टू हे नानक देव
टू हे सूरदास के आखे
गुलज़ार के राखी भी टू
और क्रिशन के राधा भी टू

समुन्द्र के शीतल लहरें भी टू ही
समुन्द्र के ज्वर भी टू ही
जब से देखा है , तेरे झील से आखे
मैं जीना सीख गया हू

एक शराबी की shaki भी टू
जादूगर का छूमंतर भी टू
साचात यमराज को हराने वाले सावत्री भी टू
पुत्र मोह में अँधा ,निर्लज ,कायर, असहाय धित्रश्तरे रूपी समाज जैसे लोगो की अकेली पुत्री भी टू

टू हे मेरे ताज है
हां टू हे मेरी मुमताज़ है
मई मकबरा क्यों बनायू तेरी
जब जिन्दा टू मेरे साथ साथ है

सुबह सवेरा मंदिर से आने वाली मधुर घंटियों के आवाज़ भी तू
और मस्जिद से दिल को छु लेने वाली मधुर अज़ान भी टू

सुबह के बदली भी तू हे
और पंच्यी का चल्चालना भी टू
सुबह के आवाज़ करनी वाली कोयल भुई टू

वर्णन देखे
गुलाब भी टू ही
और चंपा और चमेली भी
बेला का भूल भी टू

चन्दन के व्रिस्क से आते खुसबू भी टू
और महक की अधूरी खुसबू भी टू
उसने कहा था
परवीन हमरा धर्म अलग , खान पान अलग
मेरे नवाबी शान भी अलग
एक कोई और तेरे ज़िन्दगी में ऐयेगे
तुझे अपने बनके जायेगा

जब से देखा है , तेरे झील से आखे
मैं जीना सीख गया हू

ईद का चाँद भी तू
उस वसंतसेना के मन में,
रहने वाली पवित्र गीता भी तू
चारुदत्त के मन को,
हर लेने वाली, वो प्राण भी तू

धर्म भी तू
वेद भी तू
पुराण भी तू
वो पाक-ए-कुरान भी तू
एक पीर-पैगम्बर की, मज़ार भी तू

मरनेवाला जिस गंगाजल को तरसे,
वह जल भी तू
माता सीता की प्रतीक्षा भी तू
असंभव को संभव करने वाली भी तू
प्रश्न भी तू, उसका उत्तर भी तू.......

mere maharsahtrain bhi tuu, aur mere woh gugratan bhi tuu...
एक है फिर भी नहीं है, एक नहीं है फिर भी है

मोह भी तू , माया भी तू
और अहिल्या के प्राणों को
एक और मौका देने वाला ऋषि भी तू

माता भी तू पुत्री भी तू
शायद होने वाली मेरी,
अर्धांग्नी भी तू..............
मेरी अंतरात्मा भी तू
और परमात्मा भी तू...
और हे मेरी प्राणों से प्रिय,
इस कवि के प्राण भी अब तू...

कविता का कोई अंत नहीं है
नदी रूप कविता, सागर में ही जा कर मिलते हैं...
मोह भी तू, माया भी तू,
मेरे लिए ब्रम्हा भी तू...
विष्णु भी तू है, और मेरा महेश भी तू है...
गगन,धरती और पाताल भी तू...
जब से देखीं है तेरी .झील से आंखे,.......
मैं जीना सीख गया हूँ...
हा जब से देखीं है तेरी .झील से आंखे,.मैं जीना सीख गया हूँ...
- प्रवीण इलाहाबादी व महक सुल्ताना...
PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA
(there can be Thousand of Mehek Sultana)

Wednesday, May 12, 2010

मेरें महक नाम कर गयी

POEM- मेरें महक नाम कर गयी
अल्लाह करे तुम ग़ुमनामी के अंधेरो में खो कर रह जयों
और इस शायर का ही नाम बढायो

अल्लाह दरबार में हम यह हिसाब कर लेँगे
कितने नज़्म तेरे थे और कितने मेरे
कही मेरें परछाई तेरे दामन पर ,
या तेरे परछाई भी मेरें दामन पर
होश में भी ना पर जाय

और खून की होली खेल्नेवालो उन दरिंदो को हमारा पता ना चल जाय
और खून से होली खेल्नेवालो उन दरीन्दो को, हमारा पता ना चल जय
और फिर से एक और गोधरा ना हो जाय

महक मैं यह भी जनता हू
टू कई कई नामो से आती है
और मेरा profile देख के जाती है

टू कए कए नामो से आती है
और मेरा profile देख के जाते है

क्या मुझे पता नहीं चलता , उन सब प्रोफाइल से मेरें महक के खूसबू
देखना जरा सावधानी से, कही किस्से को कुछ पता नहीं चल जाये
कम से कम एक घर तो बस कर रह जाय
कम से कम एक घर तो बस कर रह जाय

यह अल्लाहबदी तेरे ही नाम पर लिखता है
यह अल्लाहबदी तेरे ही नाम पर लिखता है
फिर भी मोहब्बत के दास्ताँ में , M से आगे k को रखता है
फिर भी मोहब्बत के दास्ताँ में, M से आगे k को रखता है

भूल जाता है अपने कविता को,
भूल जाता है अपने कविता को
और H को K से भी आगे रखता ही

लोगो को नहीं पता, महक एक मुस्लमान थी
K एक ईशाई थी ,
और जाहीर ही कविता एक हिन्दू थी
पर इन नामो मैं H को नहीं छोर सकता
पर इन नामो मैं H को नहीं छोर सकता
क्या फर्क परता हे, अगर वोह एक सीखनी थी

मैं तो हर धर्म ,हर समाज , हर वर्ग में जाता हूँ
और गुरुद्वारा के लंगर में,कभी कभी आज तक रोटी खाता हू
और गुरुद्वारा के लंगर में, कभी कभी आज तक रोटी खाता हू
मैं टोह सचात धर्म हूँ, मैं सर्व धर्म हू --------------
-----------------
सच मे मैं ही साचात धर्म हूँ, मैं सर्व धर्म हू, और मैं हे साचात धर्म हू --------------
-----------------
उन गुरुवो, मौलवी,पादरियों, और पंडितो की क्या सुनते हो
मेरे सुन
इस धर्म की सुन
इस मीर की सुन
इस फकीर की सुन
इस पुजारी की सुन
सच बात तोह यह है
जब भी कही धर्म शब्द याद किया जायेगा
मेरा भी नाम लिए जायेगा
ऐसे कोई सख्स है, जिसने चारो धर्म जी लिया , एक हे जन्म मे
यह मेरे अल्लाह की मुझे सौग़ात है, और मेरी किस्मत
INCOMPLETE, to be continued.

PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA
( there can be thousand of Mehek sultana)

Sunday, May 9, 2010

मेरे इस देश के नए राम लखन


मेरे इस देश के नए राम लखन,


जब भिड़ पड़े थे दो भाई,

वर्चस्य के लड़ाई में,

अपने बाप की कमाई,

जागीर और इज्ज़त नीलाम कर दी...

मेरे देश के दो होनेहार पुत्र

मुखाग्नि देते वक़्त तुम्हे लज्जा न आई थी,

तुमने वचन नहीं लिया था...!

अपने ही परिवार की बात रहे हो...

और छोटे को डांट रहे हो...

क्या होगा अगर वो तेरे से भी आगे निकल जायेंगे...

फिर भी वो तेरा ही परिवार कहलायेगा...

सभ्यता से भरी कुंती(महाभारत) ने तो यही कहा था

तुम जो लाये हो, तुम सब भाई बाँट लो...

अपने माता के ह्रदय को छलने...

इस मूक अंधी समाज को क्या पैसे दिखाते हो...

( This poem is for publish)
इतहास ने तोह हमें धर्मराज्य युधिस्टर भी दिया था , जिससे यश कों भी उपदेश दिया था
और अपने हें माँ के कोख से जन्मे पुत्र कों चोर दिया था
और अपने हें माँ एक कोख से जन्मे पुत्र कों चोर दिया था
सिर्फ अपने और मतयो के लिया
युधिस्तर ने कहा था , क्या दूंगा मैं अपने छोटे मो कों जबाब
जब पुचंगे गे वोह कहा गया मेरा लाल
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क्या बचपन के वोह दिन भूल गया
जब तुने अपने छोटे भाई के लिए कई लडिया लड़ी होंगे
उसे टू कई बार, बार बार जान मुझ कर खेल में हारा होगे

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और हे ------ क्या तुझे याद है वोह दिन
जब भाई ने भाई के लिया निवाला बनाया था
और एक हें बर्तन में तुम दोनों भाइयो ने कई कई बार , साथ साथ खाना खाया था

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हे ------, टू हें क्यों नहीं देता क़ुरबानी
इतहास गवाह है, हमेश बड़ा हें kउर्बानी देता आया है
और छोटो को हमेश आगे nइकालता गया है
वार्यं देखियी
जब बारह किलोमेतरे के दूरी उस भाई ने kआर दे थे साथ मिनट में पूरी
एक फॉर्म भरना के लिए , नहीं टोह बंद हो जाता दूकान
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मुर्चित हुए लखन को देखर जब रोह पड़े थे सचत राम
अपने हें भाई की मृत्यु देखर जब अपने हें मृतु मांग रहे थे भगववान
कोई मेरे इस लखन को जिले दे, भला मेरे प्राण पाखरू उर ले
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हे -----, जब खुरबानी एक नाम आइयेगा, टोह हमेशा बड़ा bhai हें युदिश्तर कहेलियेगा
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इस धन रुपे वर्चस्य में aise क्या सकते है
जो bhai भाई ko मरता hai
और kal अपने he भाई se हारना वाला woh भाई
आज apne हें bhai को harana के liye सोचता है

------------करके mata के ह्रदय ko बार बार चलने
--------------------------------------
बंद kar इस वर्चस्य के लड़िये ko
गले se लगा अपने chote भाई को
----- गीता कहते है टू एकला हें ऐया था
एकला हें जायेगा , क्या लेकर आइये था
और क्या लेकर जायेगा

अगर तुने nahee किया aise
टोह सीधा नरक में जायेगा गा
वह भी इस अल्लाहबदी को मौझुद पायेगा
वह भी इस अल्लाहबदी को मौजद पायेगा
परVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA
( there can be thousand of mehek Sultana)
The poem is and every poem is imagaination, and doest not hint to anypne in particular
There is no writter or poet in this entire space who has always inspired Tropic from real life
Only poet like William who only writes on nature , rest mY biggest hero was also inspired and use to get tropic to write from this society.
Anypoet who has written about love, society, god, courage, non living thigs, animals are all inspired with certain incidents.
either its child marriage, dowry system, Vidhya, sati all have commented on the Prevaling cultures in our society

एक श्राप ऐसा भी

शिक्षक का भी इम्तिहान आया है

एक बन्दर के दादी थी

उस घर के तीन सरवन कुमार

Saturday, May 8, 2010

इतहास के वोह सटी सावत्री एक नयाँ रूप में ऐया है

For real fighters against operation Pink Ribbon
इतहास की सावत्री एक नया रूप में ऐई है
उसने फिर से कई कई बार अपने कवी का प्राण बचाई है
उसने फिर से कई कई बार अपने कवी का प्राण बचाई है
हद टोह तसने बी हो गयी , जब उस्नामरे फिर से यमराज को ललकार दिया
अपने पति के लिया यमराज को भी Dutkar diya -----------
तब बोले यमराज
सावत्री तेरे को मई खूब pechante हूँ
कभी सावत्री, टोह कभी सुचित्रा बन कर आती हहो
बार बार मेरे कार्य मे बाधा pअहुचाते हूँ
ऊपर मुझे ब्रह्मा को भी देना परता है जवाब
ऊपर मुझसे ब्रह्मा बार बार पूछते है
तेरे सावित्री से क्या मिथ्रिता है

एक बार मैं तेरे से हरा था
उसका लिए इतहास ने बार बार दुत्कारा था
उसके लिए इतहास ने बार बार दुत्कारा था
मुझे अपना कार्य करने दे
इसका समय हुआ है आब पूरा
यह टोह नरक में ही जायेगा , और लगता है वहा भी गुल खिलेयागा
इसका फैसला टोह चित्रगुप्त करेगे
इश्वर करे इसे स्वर्ग नसीब हूँ
नहीं तो मेरे हें सत्ता चीन जायेगे
मुझे भी मधुमय है, पर यमराज होकर भी मांश नहीं खता
औत तेरा पति टोह मांश हें मांश खता है
और उब झुका है इतना
kइ नरभक्षी भी बनाना के तमन्ना r
अख्त है
Incomplete


risheyo को भी मोहित कर गयी थी वोह मत्स्यगंधा

कभी kise कवी से ना लो पंगा

मुझ पर भी देश द्रोह का मुकदमा चलयै जाया, ise बाहनाँ कुछ नाम तोंह कमाया जाय, , देश का पैसें, समय बचाया जाय और नायदीश और वकीलों के वाहवाही ली जाई

चाचा चौधरी और allahabadi

देवतायो में छिड़ी वर्चस्य की जंग, जब पंडित,ज्ञानी,पुरोहित ने कवी को latara था

मेरे दो अनमोल रतन

Poet tries to remember someone somewhere. and has tried to narrate & dared to write about her 2 loving Sons.
people have asked me and thats true i write everything that is hapening or has happened in the past, present and future.
Infact everyone other poet

Friday, May 7, 2010

दुर्गन्ध अति है, इन साडी हुई सभ्यताओ से

Master piece poem, first poem of my life ( 8 years back), when i got a biggest setback in my life .
every other poet or author and philospher had a reason to write.
That particular incident hurted me and i wrote my first poem of my life
Actuallly i scribbled and it became a poem finally,

एक कवी ने जब कविता को पुकारा, कविता बोल गए , कवी महाराज कविथाया बदल चुके है

पांच बहनों का एकला भाई

Written on 5/05/10 ( A tribute & Salute to all my Sisters , who want to grow in life and may have Different dreams.
Some may love to Become a future Doctor, Engineear, Administrative Services lawyer, Commercial Pilot, Journalist, Business Tycoon, sportsman, Media Person, Actor, Hospitality Industry
Few may love to become A teacher, A nurse--------------
least Or none will be A poet, or writer or be called Social activist

मेरा घर में रहते है कीरे और मकोरे

जब बोल पड़ा चादर की सिलवाते

Thursday, May 6, 2010

पुष्प की अभिलाषा -(2)


A Tribute to Makhan lal Chaturvedi who wrote this beautiful poem, that i read 22 years back in my school( Class 6)
The poet aim is not to give his comments or prove right or wrong, since here it has been alraedy proved by Late Makhan lal that
Flowers also have feelings within themselves, and they carry some ambtion in life like normal human beings.

फुस्प क अभिलाषा( माखन लाल चतुर्वेदी)

एय फुस्पा क्या तू गुलज़ार से भी बार हो गया
क्या तेरे में जान नहीं है
पर तुने अपने खुसबू( गुलज़ार फवोरिते)से
,पुरे दुनिया को महक(थे ओनली मुस्लिम इन प्रवीन लाइफ)आया है
माखन लाल सच कह गया थे,
पर यह फुस्प यिक प्रश्न पुचो
उत्तर दोगे??
सच बोलना,
क्या तुने कभी गुलज़ार को फुस्पा से नहीं मारा,
सच बोलू
तेरे हर बगिया गुलज़ार हेंई नज़र आती है.
.पकरे गयी,
,अज्ज माखन लाल तो नहीं है,
हा पर इस्वर क दरबार में , जहा हिसाब किताब होता है
माखनलाल क कानो में यह जर्रोर कहूँगा
वोह फुस्पा भी झूठ बोल कर गए थे,
फुस्पो में यह नहीं कहता तुम्हे अपने देश से प्यार नहीं है......

फुस्पो में यह नहीं कहता तुम्हे अपने देश से प्यार नहीं है......
फुस्पो में यह नहीं कहता तुम्हे अपने देश से प्यार नहीं है......
फुस्पो में यह नहीं कहता तुम्हे अपने देश से प्यार नहीं है......

परवीन अल्लाहबदी & महक सुल्ताना

एक कवी की अंतिम इच्छा

जब नरभक्षी एक विसेहेंस व्यक्ति का मांश खायेगा

Wednesday, May 5, 2010

जब चढ़ा भिखारी मर्सिडीज़ पर

जब लर पड़े बापू और भगत सिंह

नाथूराम तुम्हे फिर आना होगा, मेरे इस देश को बचाना होगा

एक कहानी इक्लव्य की जुबानी

मैं अपने करुना देख रहा था

Dedicated Again To Karuna nirupama Nicodemus Nicodemus
Written On 13th Nov 2009,
तुम मुझे उस दिन बहुत याद आइये थे करुना, उसे दिन मैंने यह तेरे लिया लिखे था
क्या करू यह सोचता था, इसको भी छापूंगा, पैर जब लोगो ने कवी से हें छपने के पिआसे मांगे
तोह ब्लॉग में दाल दिया

जब चला बूढा शेर कई गीदरो से मुकाबला करने


This particular poem is inspired from the Injustice that is happening Every where in this Whole world.
Self Centred and selfish people are everywhere who does not like to a chance to others and keeps on dominating in every aspects.
of life.
Either in professonal career where they does not want others to grow in life or we can take it in sports where Dominating people playing for years does not encourage or can say Inspire people .
In my past 34 years i never knew or no one taught me that Sports are dominated and played in groups only.
here i refer to one particular Sports BAD-MINTON where i have seen people occupying the courts and does not like to give chance to others, or sometime they even have not like to play with people whose game is not at there level
There can be lot of reasons for there beautiful game or so callled level
May be they have been playing continously 3-4 hours a day for past many years. and since playing with each other only

i agree there level must have increase.

Though i am not here to discuss reason at all
They have mastered themself in that particular game, with there hardwork and learned new skills
A salute to these poeple but can we call them Sportsmanship that they will not encourage other people games and will like to demoraliase there game by saying that they dont want tp play with the so called BAD Players or in there langauge underrehearsed.
I ahve been a Sportsman since my school days and have played football & Tabletennis till class 12th .
after that i never got any opportunity to play any game , i mean atmosphere or you can say busy with other priorities in life.
My parents and my sports school teachers has alwasy taught me that true sportsmanship is Motivation and Champions should encourage others.
This poem is dedicated for MY FIGHT FOR JUSTICE AGAINST SPORTSMANSHIP SPIRIT .
sometimes i wonder are these people can be really called Sportsman.
I remember a day way back in my childhood when we had aschool Foootball tournament and in one game i got a leg pull while striking the Socceer ball.
Though we won the game , next day we had a very cruicial match with calls (9B) Team where Tribhuwan was the Captain.
My all team mates requested Vergese sir to pospone the match till coming Monday if possible, Match was suppose to be held the very next day on friday.
vergese Sir gave out team and match was posponed from Friday To Saturday.
Nice Encouraging Match where Rajesh Jain team Lost the match after penalty shootout Round.
Well after penalty was equal by 3 goals each since i had taken a Shoot well at the penalty, got the opportunity for the sudden death.
Pravin won the TOSS and chose to shoot.
I agve my best shot but Manoj Navik could anticapte and was able to Easily stop that after Diving toward his left.
I congraluated him for stopping that and then i cried.
Today Also i cried
That was 19 years back, this was 1 year back.
See the spirit i could not forget that match till date because the Entire Team lost due to me, Kaash Maine woh goal dal diya hote.
kavi Kehta hai-- till date None one my team mates anjan, vishal annad, Rupesh,----- and Captain rajesh Jain told me anything.
This poet is crying while writing all these but I salute You all For the Sportsmanship That My teammantes had shown .

This particular poem is inspired from that and my fight for the sports man spirit.

Written on 11 Nov- 2008

Jab Chala Budha Shaer kayee Geedaro se Mulabala karne
जब चला बुध शीर कई गीदरो से मुकाबला करने
तब जाना जंगल राज ख़तम हो चूका है
और वोह बुध हो चूका है
और वोह बुध हो चूका है
जंगल में टोह कई जानवर रहते है
मगर इस बूढ़े शेर को गेदर जाएदा देखते है
मगर इस बूढ़े शेर को गेदर जाएदा देखते है
वोह कई गद्दार है
जो भूके शेर को तरसते है
उस जंगले में आजाद गुम्हाने के किया तरपते है
वार्वन देखिये
शेर तो शेर है( इस जंगले का राग)
क्या तुम शेर को भी उसके हदे बतओवोगे
और क्या उसे जहा तह कहलने के लिया तर्स्योगी
मानता है शेर अब बहुदा हो चूका है
कई गिदर मिलकर शेर पैर वर करेंगी तो क्या होगा
भावना देखियी
कई गिदर मिलकर शेर पे वार करेंगे भी टोह क्या होगा
शेर टोह शेर हें है, मरते दम तक उन सब गीदरो का मुकाबला करेगा
जब एक गिदर ने शेर को धमकाया
कहा इस जंगले से निकाल दूंगा
तब दरः भूखा शेर
जाग परा शेर
टूथ पर शेर
जब गर्गे बुध शेर
सरे जानवर आ परे
कूटे, बिल्ली, के बात नहीं कर रहा
शियर, और लोमरी ने जब शेर को समझाने चाह
कहा तो अकेला शेर से, दूर देश गो दूसरी जंगले से एय है
यह सरे गिदर यह बचपन से रहते है
यह सरे गिदीर यह बचपन से येहे रहते है
टू अकेला क्या ख़ाक कर पायेगे इनका मुकाबला
फिर दहर शेर
कहा यिस जंगले रुपे देश पैर किस्से का नाम नहीं लिखा
मैं तो अब इससे जंगले में रहूगे
और सिर्फ गीदरो को हें चुंगा
उनको हें खायूँगा
खरगोश, हिरन, ---,---- और बरसेंगाहाहा का शिकार नहीं करते
ना हें बकरी, भालू, और लोमरी खावोंगा
एक एक गीदरो का शिकार कर के जायूंगा
और शेर ने कहा
तमन्ना टोह अपने देश पैर मर मिटने के थे
तमना टोह अपने देश पैर मर मिटने के थे
जैसे खाते गोलियीये सीना पैर , मेरे देश के वीर जवान
पैर क्या करू , येही इस जंगले में ( badminton Court par)लरते लरते मर जयूंगे
कुछ काम ने आ पाया अपने देश का
कुछ काम ने आ पाया अपने देश का
कम से कम शीद टोह कह्लायून्गी
कम से कम शीद टोह कह्लायूंगे
तब मन ले माफ़ी गीदरो ने
ख़तम हो गयी उनके गीदर भबकी
यह सब तमाशा होते हुई बाकी सरे जानवार देख रहे थे
यह सब तमाशा होते हुई बाकी सरे जानवार देख रही थी
और बुध शेर सोच रहा था क्या अब जंगल भी बात चूका है
जानवर क्यों राज्य के सीमे देखे गे
क्या जब शेर को प्यास लगेगे तो वोह दुसरे जंगले नहीं देखेगा
औत वेदना देखिये
और वेदना देखियी
जब अपने हें जंगले में मानसग नहीं है, टोह kआहा से मांश खायेगा
शायाद इंसानो से सीखकर, जानवरो ने भी जंगले भी बात दिए है
राजश्थान कक पियासा ऊठ , पुनजब नहीं आइयेगा
और उप का बुध शेर, क-------- नहीं आइयेगा।

शायर- परवीन अल्लाहबदी एय महक सुल्ताना
There can be thousands of (Mehek Sultana)

Tuesday, May 4, 2010

बाईस करोड़ का kashab

बाईस करोड़ का कसाब This poem On sale, as it can create history- it took me 79 hours to complete it in phases
written on 23 October 2009
कवी- परवीन अल्लाहबदी & महक सुल्ताना
( there can be thousands Of mehek sultana)

मेरे जीवन में आयी है मेरी नयी कविता

This poem is For 1 kavita who is somwhere & the Other kavitha ( see the Difference of H) who is here & finally 3 my collections of all 150 poems written by me. All Together makes MERE JEEVAN KI Kavithaya
कवी का जीवन क्या है कविथाया
यिक कविता चली गयी थी , यिक कविता आ गए है
जीवन से चले जाने वाली कवित फिर से aइए है
जीवन से आता साल पहले चले जाने वाले कविता, फिर से नया रूप ले कर आयी है
एक कानपूर के थी, एक मंगलौर के
एक बार बार राम राम कहते थे, एक पूजा नहीं करते
यिक को शिखायअ गया था hआठ जोड़ने की कला, aइक कहते है pएयर बहार निकाल के मत खेल
This is badminton- Dont give any loose points
कवी को समझे
हर कविता के भाव, भावना, कद , काठी, और शबद्वाली अलह अलग होते है
अतातु सबका मतलब यिक हें होता है
मैरे जीवन में भी आ चुकी नए कविता अनोखी है
वोह mएरे सब कविथाओ के कविता है
हिंदी ऐसे बोलते है, जैसे अँधा rअसता बार बार पूछे
वोह हिंदी बोलती नहीं, हिंदी को हेंई का जाती है
और उसके सामने tओह हिंदी को भी लाज आ जाते है
और ऐसे सब्द्वाले निकलते है, जैसे राष्ट्र भाषा उसके हें दीं है
वर्णन देखे
एक कनूर के, एक मंगलौर के
दोनों कविथाओ में कितना फर्क है
यिक कविता दिशा pउचा kआरती थे, यिक कविता देशा देखते हें
भवनों को समझे
यिक मंदिर ले कर जाते है, यिक गिरजाघर के दरवाजो पे चोर जाते है
यिक वोह डरते थे सभ्यता का भूत से, मैरे ये कविता टोह सभ्यता का मजाक उरते है
यिक कविता अपनों को चोर गयी, अपनों के लिए
मैरे यह कविता अपने हें पते को चोर गयी ,अपने मंजिल के लिए
TO BE Continued------------ Mere jeevan me aiyee hue mere nayee kavitha
कवी- परवीन अल्लाहबदी & महक सुल्ताना
( there can be thousands of mehek sultana)

Monday, May 3, 2010

एक और निरुपमा ने दी आहूति ( मोहब्बत माग रही बलिदान)




Good Morning, Left My Badminton Today When i got this Breaking News Today at 5 am .


Could not --Resist----------- Myself to write or comment something on this Subject।


Dedicated to late Nirupama Pathak, who is no more and also Dedicated to Karuna Nirupama Nicodemus( नाम लूँगा तो बदनाम हो जायेगी) who knows Nirupama better than me.
Well can be Nirupama Pathak, or Nirupama Nicodemus, Aur Nirupama Kaur, & Nirupama Mishra

जब जब तेरा नाम आया , मुझे लिखे हें पड़ा
जब जब तेरे नाम आया, मुझे लिखने हें पड़ा.
इतनी  मोहलत तो  दे दे मुझे
इतनी  मोहलत  तो  दे दे मुझे
तेरे इस नाम को भी अमर कर जायु 
( शायर- परवीन अल्लाहबदी & महक सुल्ताना)
सुधा अपने हें हाथो से अपने कोख  को उजर दिया.
क्या हो जाता अगर तेरे नन्ही से फूल किस्से और बगिया में उगती
माली तो फिर भी तुम लोग ही  कहलाते
इस धर्म और जाती वाद और कितने क़ुरबानी मागेगे
सुधा क्या सच में उस फूल को तुने नौ म्हणे अपने हें कोख में रेखा था
सुधा क्या सच में उस फूल को तुने नौ महीने  अपने कोख में रखा था
कवी पूछते है( भावानावाओ को समाज) apne BAD- MINTON CHOR KE LIKH RAHA HOO
क्या हो जाता
क्या हो जाता
अगर वोह निरुपमा पाठक से निरुपमा सिंह या फिर निरुपमा श्रीवास्तवा कहलाती
तेरे को और पिरित करता हूँ सुधा
क्या हो जाता--------
क्या हो जाता---------
अगर वोह निरुपमा पाठक से निरुपमा सुल्ताना कहलाती, या फिर निरुपमा sएक़ुएइरा( Sequeira) कहलाते


व्यंग तो देख
सुल्ताना पसंद न आया हूँ टोह निरुपमा अख्तर कहलाती
फिर भी वोह तेरे नन्ही निरुपमा हें होते
फिर भी वोह तेरे नन्ही निरुपमा हें होते
जिसको पहला सबद माआआआआआआआआआआआआआआआ निकले होंगे
जिसको तुमने ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया होगा
और हे सुधा , मैं भी तेरा पुत्र  हूँ
मैं हर दिन, हर रोज़, हर रात एक फूल के लिए मरता हूँ
तुने अपने ही  बगिया उजार दिया
तुने अपने हें बगिया उजार दिया


एक  खेले हुआ फूल को मुरझा दिया
एक  खेले हुआ फूल को मुरझा दिया
अरे pandityen   , तुझसे तो अच्छा वोह शुक्ल था
अरे पंदियातायीं, तुझसे  तो अच्छा वोह शुक्ल था
जिसने  ने मेरे बहिन मधुमिता को मारा था
कम से कम अपने हें कूख को नहीं उजारा था
कम से कम अपने हें कोख को नहीं उजारा था

सुधा अपने ही हाथो से अपनी कोख  को उजाड़  दिया.
क्या हो जाता अगर तेरी  नन्ही  सी कली किसी  और बगिया में उगती
माली तो फिर भी तुम लोग ही  कहलाते
ये धर्म और जातिवाद और कितनी क़ुर्बानी  मांगेंगे 
सुधा, क्या सच में उस फूल को तुमने  नौ माह  अपनी  ही कोख  में रखा  था
सुधा क्या सच में उस फूल को तुमने नौ माह  अपनी ही  कोख  में रखा था
(कवि  पूछते है भावानावाओ के साथ) 
समाज को क्या हो जाता है....
क्या हो जाता........
अगर वो निरुपमा पाठक से निरुपमा सिंह या फिर निरुपमा श्रीवास्तव कहलाती
तेरे को और पीड़ित  करता हूँ सुधा
क्या हो जाता--------
क्या हो जाता---------
अगर वो निरुपमा पाठक से निरुपमा सुल्ताना कहलाती, या फिर निरुपमा सेकुयेरा ( Sequeira) कहलाती 
व्यंग तो देख
सुल्ताना पसंद न आया हूँ तो  निरुपमा अख्तर कहलाती
फिर भी वो तेरी  नन्ही निरुपमा ही  होती 
फिर भी वो तेरे नन्ही निरुपमा ही होती   
जिसका  पहला शब्द  माँ निकला  होंगा 
जिसको तुमने ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया होगा
और हे सुधा , मैं भी तेरा पुत्र  हूँ
मैं हर रोज़  हर दिन, हर रात एक फूल के लिए मरता हूँ
तूने  अपनी  ही  बगिया को उजाड़  दिया
तुने अपनी  ही  बगिया उजाड़  दिया
इक खिले  हुए  फूल को मुरझा दिया
इक खिले  हुए  फूल को मुरझा दिया
अरे पंडिताइन , तुझसे  तो अच्छा वो शुक्ल था
अरे पंडिताइन तुझसे  तो अच्छा तो  वो शुक्ल था
जिस्ने  मेरी  बहिन मधुमिता को मारा था

कम से कम अपने हें कोख को नहीं उजारा था
कम से कम अपने हें कोख को नहीं उजारा था
 
( This all people Named Does not relate To any caste Or & The Poet Aim is not to Hurt the Sentiment Of Any particular Segment or caste)
There Can be Thousand of people with Name Nirupama & Then also Pathak, People means our Society calls it with a very beautiful Name (Honour Killing ), finally Society consists of different People coming from different, Caste, Creed, language, eating habits & Offcarse the Golden word जातिवाद

जब लौट चले यमराज

जब लौट चले यमराज - PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA
the poet aim is not to hurt the sentiments or feeling of any particular community,
there are also a sector of people who still workship Yamraj ji, according to Brhma puran, yamarj only follow his duty & responsibilies given to him by Lord Brahma ( The Creator) .

एय थे यमराज मुझे लेना अपने संग संग
मैंने कहा ,अभी मत करो मुझको तंग
itne रात बिरात को ना लेने आया करो,

अभी अभी तो सारे देवताओ के लड़ाई सुलझे के aaiya हूँ
सुबह तक रुक jayoo , पता नहीं फिर कब सुलायोगे,
पता नहीं फिर कितने रातो तक जगोग्योगे
पहले तोह अपना भैसा बहार ही रख
हमरा यहाँ visitors parking allowed nahi है
यम का भैसा , दोसरी जगज़ पार्क कराया

सुबह होने पर मैंने यमराज जी से पूछा
क्या कुछ खयोगी या फिर कुछ piyogea

मैं तो चाय पीता हो हर घंटे में ४/ चार बार
नाश्ते में लेते हो आधा सेर दूध, आधा किलो फल, और एक तरबूज
खाने में गोस्त भुना हुआ, ढेर सारे ----------------( According to hindu mythology , yamrraj is a NON-Vegeteranian)
और कई तरह के पकवान
यमराज बोले, इतने हें या कुछ और
मैंने बोला यह तो सुरुआत है
दिन भर मे दस हाथियों का भोजन एक ही समय में खाता हूँ
और जब कुछ ना मिले तो ग़म भी पि जा ता हू

मुझे भी मधुमेह है यमराज
इस भूज को क्या तुम उठा payoge
मुझे काहा काहा तक साथ लेकर जायोगी

मेरे ही साथ यही रह jayoo
मेरा अपना कोई नहीं है

दोनों मिल के अपने गम बटेंगा
सुना है तेरे दो बची है यमराज
उनको भी येहे बुला ले,
उनको भी मेरे हें घर में बसा ले
जब हमारी भाभी भी रहेंगे
तो खाने की कमी ना होगी
गरम गरम रोटी के तमने भी होगे पूरी,

मेरे दादी को १५ साल लेजाकर क्या खाख रख पाया
आखिर उनसे पानपराग नहीं churwa पाया
वोह तो १ साल से मेरे साथ रहते है
उनका हें पोता ही, क्या ले जा पायेगा
और ले भी गयी तो क्या खिला पायेगा

मेरे जैसे लचर, बैगारैत , भैया को टू कितने दिन अपने पास रख पायेगा

तेरे सारी के सारी दासिया मेरी होंगी,
और अगर हो गया तेरे सत्ता पे काबीज
तो मई हे , कल से यम kahlyoonga

तो सारी रानिया भी मेरे होंगे
तू इस अनहोनी को कब तक बर्दास्त कर पायेगा
वह से यहाँ पे , कुछ हें चोएर =के जायेगा
यमराज मेरे दादी लौटा दे, मेरे अधूरी सपने पूरी कर दे
कुछ देर और बैठ, मेरे कविता तो पूरी होने दे

मैं खुद गमो का मारा हू
मुझे और क्या कोई सताएगा
और क्या खाक ले कर जायेगा

तेरे नरक मे ऐसे कोई सजा है
जो सजा अब तक झेल रहा हूँ

जो रोज बहाता हो, गमो के आशू
वोह नरक को भी पातळ बने देगा

तब भाग चले यमराज
लौट चले यमराज
खुद यम के अखू में वेदना के अंशो थी
सोच रहे थी यम्र्राज
अल्लाहबदी ठीक कहता था
नरक से जाएदा दुःख और पीड़ा , तोह धरती पैर हे है
पैर इस बार मैं क्या दूंगा ब्रह्मा को जवाब
( to be continued)

( To be continued)- sorry for few spellings & Gramitical mistakes, still on the learning phase, and learning from people like manjula, sraddha, sajid, suresh chandra,ambarish ji, amrita, saleh, julie, DR rajeev & DR saroj& most important Dharmendra soni ji who trasslatyed my fist poem when i did not know how to do it, and how cn i forget Avinash S ramdev, few more who are not in my list
PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA

Sunday, May 2, 2010

शायरी तो हम भी करते

This particular Nazm is Dedicated to My wife, My Tuttee ( My Mulgi)




शायरी टोह हम भी करते, अगर मुकमल मंजिल होते
शायरी टोह हम भी करते, अगर मुकमल मंजिल होते
एक gहरोडा भी ना बस पाया तेरा बेगायर

ईट और पत्थर से बना मकानों को घर नहीं कहते
ईट और पत्थर से बना मकानों को घर नहीं कहते
दिल्फेक आशिक का दिल है, जरा ध्यान से, कहे tओठ न जाये

ईट और पत्थर से बना मकानों को घर नहीं कहते
जब टू हें नहीं मेरे ज़िन्दगी में, टोह यह शायरी किसके लिए
तेरे bअगयार भी मेरे कोई मंजिल है
यह पता हें नहीं
मेरा tओ घर hई टूथ गया बसने से पहले

शायरी टोह हम भी करते, अगर मुकमल मंजिल होते
शायरी टोह हम भी करते, अगर मुकमल मंजिल होते

शायर- परवीन अल्लाहबदी & महक सुल्ताना
( There can be thousands of Mehek SULTANA)

एक DF(DIRECTOR FINANCE) था

एक डफ था
निराला अलबेला
कद काठी ऐसा, जैसे बौना भी सर्मता हूँ
सवाल स्वरुप जैसे आस्मां पैर कलि घटा
चाल चीते के, सोच लोमरी का, और दिल डोमरी का
जुबान में ऐसे मिद्थास, जो सहाद न दे पाया
भुगते हुए मेरे जुबान से सुनियी
जुबान में ऐसे मिठास , जिअसे रबरी में भी मिस्सरी डाली गयी हूँ
जीवन रूपी शतरंग का ऐसा खिलाडी, मैंने जीवन भर नहीं देखा
उसके हर चल में शय और मात थी
उसके हर चाल में शय और मात थी
कवी कहता है
कद काठी ऐसा, जैसे बौना भी सर्मता हो
फिर भी वोह निडर था
गर्वात चेरा , सोच औरे से हट के
जीवन रूपी सतरंज का सबसे बड़ा खिलाडी था

अपने रुतबा और दबदबा से, व्हो दुनिया जेताता था
जिअसे घमंड ने चक लिया हो , सत्ता का स्वाद
( Incomplete- To Be continued), I have to leave for field, what to do cant take it as a full time, i wish i could

Friday, April 30, 2010

यिक चंदालनी थी

This Particular Phrases or you can say is a comment on the latest Addition on the List Of Gaddars Yes Miss Madhuri Gupta बचपन में पढ़ा था
यिक चंदालानी थी
वोह मुर्दों का मांश , इंसान के खोपड़ी में छिपाकर रकते थी
जब उससे पुचा गया
यीय चंदालानी, इन्सान का मांश खाने वाली
टू मुर्दों का हें मांश खाते है
फिर मुर्दों के ही मांश cहूपा के क्यों रखते है
चंदालानी ने उत्तर दिया
कही मेरे इस खाना पे kइसी गद्दार के नज़र न लग जाये
कहे मेरे इस खाना पे किस्से गद्दार के नज़र न लग जाया
नहीं तोह मेरा खाना ख़राब हो जायेगा
नहीं तोह मेरा खाना ख़राब हो जाएगा

कवी के भावानोवो को समजे
एय एय गद्दार तुने तोह देश का सौदा का दिया
tउझ्से टोह अच्छा वोह चोर है
जो दिल और गुर्दा बेचते है

जो दिल का सौदा करते ही
जो दिल का सौदा करते ही

कवी के भावनाओ को समझे
ये माधुरी तू तो मुझसे भी बड़ी चोर ही
मैंने कई दिल चुराया
कए दिलो के साथ खेल गया
तुम तो
मेरे देश को हे बेच कर चले गयी

और ऐर्ज किया ही

मई कुछ हें बद्दुआ लेकर यिस दुनिया से जयोंगे
तुझे तो सारा देश बददुया देगा
तुझे तोह सारा देश बदुवाया देगा

aउर ऐर्ज किया है की
तेरे dअमन pएर बदनामी के चेटा
तेरे अपने हे लोगो पे परेंगे
तेरे दामन पैर बदनामी के cहेटा , तेरे अपने भी लोगो पैर परेंगे
उस कूख को भी टू नी बदनाम किया ही
हां तुने मेरे सुन्दर माधुरी को भी बदनाम किया ही
तुने हर माधुरी नाम को बदनाम किया ही

माधुरी तेरे क्या mअज्बुरियेअ रही होंगी
यह शायर नहीं जनता
तुझसे अची तो मेरे बचपन के चंदालनी tही

जू मुर्दों का मांश घ्दारो से छुपा छुपा कर खाते थे
जू मुर्दों का मांश छुपा छुपा कर खाते थी
This is not a Shayari or a peotry because its has many colours of life and covers lot of pain area
poem is something that keeps relating to Only one particular flow
Here the flow keeps on changing, hum eisa यिक चुटके या व्यंग कह सकते ही
( finally no one is Guilty until and unless he is given a fair trial and then Proved to be guilty by any court of Law)

Vayang- परवीन अल्लाहबदी एय महक सुल्ताना
(There can be thousand of mehek Sultana)

Wednesday, April 28, 2010

A Tribute to the IIT"N( IIT के लोगो को याद किया जाया)

This poem is dedicated to All the IIT"N passed out or studying in the ( Indian institute of Technology).
My Younger Bro Worked very hard but could not click it .
specially To PRIYANK MOHAN from IIT KANPUR final Batch, ( My Poem is dedicated to him) and all the IIT"N
साहेब तुम लोग भी क्या चीज़ हो,
यह पता ने नहीं चलता, कब पढ़ते हो यह पता हे नहीं चलता,
मुझे तोह आज तक पता हे नहीं चला ki ,
If one men can do a piece of work in 7 days and when he is joined by another 2 men then how many days -----------------------------------------------.
बस बस प्रियंक , मुझे अपना दोस्त बना ले
मैं तेरे तरह इतना अग तोह नहीं बढ़ पाया
पैर इस शायर को ATARAXIA का मतलब बता दे
यीय ऑफ़ IITAn मुझे एन्ग्ल्लिश सिखा दे
और ऐसा कोई मंच बना डे
तुम लोग हे कल यिस देश को समहलोगी
यहाँ हर दिन , हर रोज़ यिक गुलज़ार मरता है
और हे प्रियंक, यिस देश का दुर्भाग्य तोह देख
और हे प्रियंक। यिस देश का दुर्भाग्य तो देख
यहाँ केतन ( Kएतन मेहता) भी बिकता है
यहाँ केतन भी बकता है

शायर - परवीन अल्लाहबदी एय महक सुल्ताना
( there can be thousands of mehek sultana)

Sunday, April 25, 2010

मुझे तो सिर्फ गुलज़ार ने मारा


किस्से को सब्नम ने मारा, किसे को खुसबू ने मारा
किस्से को हमदम ने मारा, किस्से को दिलरुबा ने मारा
मुझे तो सिर्फ गुलज़ार ने मारा
एय ओ गुलज़ार, मुझे भी अपनी गोद में उथले
यहाँ हर यिक मोर पे यिक गुलज़ार घूमते है
यहाँ हर Aइक मोर पे यिक गुलज़ार घुमते है
फर्क सिर्फ इतने है के, उनमे से सिर्फ कुछ ही गुलज़ार बनते है
फर्क सिर्फ इतना है के, उनमे से कुछ हे गुलज़ार बनते है
एय यह जावेद( आप के बार में मैं कोई तिपर्ने नाही करना चहेता उतने मेरे औकात नहीं है
तेरे हर नगमो से , तेरे अबू के महक(महक सुल्ताना) हे क्यों आती है,
कही ऐसा तो नहीं तुने अपने अबू के नगमे चुरायो हो
Aइत्य पे pअदा वोह नगमे उठाओ हो, बहिन ने जो लिख के दिया उसे गया हो( मुझे mअलूम है आप gआता नहीं है)
पता था मुझे , तेरे को cहधना के लिया बैसेखैयी मिलते गयी
कभी अबू का साथ रहा, और जब नहीं रहा अबू , तवो ससुर का हाथ
उनकी तारीफ क्या करू, जिनको खुदाई खुद खोज रहे थी
तेरे को दो कंधे या बिअसेख्यी मिले ,Cहर्धना के लिया, mएरे पास क्या है उतारना के लिया
अगर तू शायर है तो मुझसे बात कर, वक़्त और हालात दोनों का मारा हूँ
देख साथ साथ पैग पीकेके भी खरा है इस दुनिया में जीना के लिया
इस दाल रोटी के चक्कर में , मेरे शायरी मारी
अगर तू मुझसे भी बड़ा शायर है तोह , मुझसे aआकार मिल,
मेरे सरे नगमे लेकर जा, wओह तेरे hइ काम आयेगी
मुझे नहीं जीना यिस ख़ाक नसे दुनिया में,
मुझे सिखने वाला कौं है
कसम अल्लाह के, जब कब्र में भी जयूंगे तो तुमको ही याद फर्मयूंगे( महक सुल्ताना)
जावेद मुझसे भी बड़ा कोई शायर है क्या??????????????????
पूरी शायरी मेरे अंदर हे है,
यिक मुस्लमान, कई हिन्दू, यिक eएचैयी, और यिक सीख
अख्तर तू मेरे शेयर नगमे रख ले, यह सब तेरे हे काम आयेंगे
और अगर जरूरत पड़ी, तो मैं उस महक से अपने आप को मेहेका लूँगा
कोय्की मुझे सिर्फ गुलज़ार ने मारा
कल को मैं मर गया महक, तोह उस गुलज़ार को याद कर लेना
मैं तेरे पास अपने आप चला आयोन्गे,nअही तेरे शाव्हर को पता क हल जायेगा
अल्लाह के दरबार में मिलेंगे- आमीन
शायर- परवीन अल्लाहबादी एय महक सुल्ताना

मोहब्बत के दास्तान जब वक़्त suneyaga

मोहब्बत के दास्तान जब वक़्त सुनेयागा
तब तुम सब को मेरा हे चेहरा याद आएगा
जिस्म बदल जाते है, रूह वाहे रह जाती है
उस वक़्त तुम सब पैर , मेरा हे प्यार का खुमार छाएगा
जो पाप तुने किया , उसके सजा येही भूगत कर जायेगा
या मुसलमानी मुझे माफ़ कर, इस रूह को इस जिस्म से आज़ाद kआर
मोहब्बत के दास्तान जब वक़्त सुनेयागा
तब तुम सब को मेरा हे चेहरा याद आइयेगा


शायर- परवीन अल्लाहबदी एय महक सुल्ताना
(There can be thousand of Mehek Sultana)

हां मई गुलज़ार नहीं हू- परवीन अल्लाहबदी एय महक सुल्ताना


इतना प्यार किया तुमको की , बदनाम कर गया
इतना प्यार किया तुमको के, बदनाम कर गया
जिसका कोई नाम नहीं था, उनका नाम कर गया
शायर- परवीन अल्लाहबदी & महक सुल्तान
( there can be thousands of mehek Sultan)

नशे में झुमने वाले,
कलम पकरने से पहले मदिरा में डूबने वाले
टू गुलज़ार नहीं है
Mआदिरा तू ऐसे पता है, जैसे sहाकी खुद पिला रही हो
कवी के भवनों को समझे
मदिरा टू ऐसे cहटा है, जैसे लोग मरते वक़्त गंगा जल को तरसे
टू गुलज़ार नहीं है

नशे में झुमने वाला, कलम पकरने से पहले नशे में दूभ्नेवाला

हां मैं गुलज़ार नहीं हूँ
क्या गुलज़ार भी pईता है , gअमो के aअंशू

उसे तो राखी मेले जीवन भर के लियी
वोह मेरा दमन चोर गयी जीवन भर के लियी
कवी के भावनाओ को समझे
जब जाना हे था, तवो यह दामन थमा हे क्यों था
यह कैसे गुलज़ार है, जिसके पास उसके राखी नहीं है
है दोस्तों मैं गुलज़ार नहीं हूँ
गुलज़ार तो अपने खुसबू से दुनिया kओ mएहेकता ही(its a coincidence that every poem or lyric gulzar uses mehek, and who know mehek better than me)
और एक तू , अपने हे भावनाओ को मोतियों में पिरोता है
aपनी चोर कुछ नया लिख
जीना सीख पीना चोर
हां टू गुलज़ार नहीं है
तेरे हर कहानी, तेरे हर नगमे , तेरे हर कविता में, तेरा घुजारा कल नज़र आता है
क्या गुलज़ार अपने हे कहानी lइख्त है

वासना के अनुभूति वाला, जो पाप तुने किया है, वोह यही भूगत के जायेगा
जो अपने हे बस में नहीं, वोह क्या इस दुनिया को mएहेकयागा
हां मैं गुलज़ार नहीं हू


शायर परवीन अल्लाहबदी एय महक सुल्ताना
(there can be thousands of Mehek sultana)


Friday, April 23, 2010

जब कन्हिया मेरे घर आइयेंगे

जब कन्हिया मेरे घर आयेंगे
स्वागत के होंगे सारी तैयारिया

माता होंगे गदगद, pइत का सीना गौरव से होगा चौरा
जब गूंगेगा कन्हिया के किल्कारिया
आखो से Aअंशु चलके गे
Hएय कन्हिया मेरे घर तुम कब आयोंगा

यिस मरघट जैसे जिंदगी को खुसबू से मेह्कौओगे
मैं नहीं समजता उस सुख के अनुभूति को
Aइक बाप का भी वात्सल्य तरपता है

घी के दिया जलते, घर यिक नयी दुल्हन के तरह सजाते
सारा आक्रोश प्यार बनकर मैं तेरे पैर लुटाता
हे कन्हिया तुम मेरे घर कब आयोगे

कभी सोचता हूँ, तुम मेरे पास आयोंगे या मैं तेरे पास आ जयू
यिक बाप का वात्सल्य तरपता है

जब नहीं सी Pहूल देखता हूँ तो उनको चुना के लिया मचलता हूँ
हेट इस्स्वर मुजे इस सुख से क्यों महरूम रखा
यिक पिता का वात्सल्य तरपता है



मैं घोडा बनता , कन्हिया उस पैर सवारी करता
माता अपने भावानयो से उसे फुकर्ती
उनके नकरी हम मिल के सहते,
जब कन्हिया दूध नहीं पता, तब उन्ही मनाया जाटा
उनके सौ नक्र , नखरा उठाया जाता

उनके सौ नखरा उठाया जाता
हे कन्हिया , जीवन क्या है
Aधरा पल, जैसे मछली बिन जल,

यिस वात्सल्य को मैं कहा लेकर जयो,
बोलो तो मैं तेरे पास आयु
कवी- परवीन अल्लाहबदी और महक सुल्ताना
( there can be thousand of mehek sultana)



Thursday, April 22, 2010

Mam what r u doing for people in Somalia, u R smiling , but see the Previous Picture.Every one wants a ------ for there Dinner , whats the dinner for


To Beat the Donkey you have to Become a Monkey(Pravin's original Quote)Here Donkey are self centered ane stupid people in our Society

Harbhajan And Neeta were just showing there innocent pleasure. I hate all those people who re commenting on this and Deomralising( sorry for spelling) sportsmanship.
Question here is the gentleman who took this snap( our NDTV) hero actally, wanted to highlight the spirit involved in any sports you choose but she People(Donkey has got a hot reason to celebrate). For then this news is very spicy like Prwan Chilly in Being Bites restaurant,( Officially its pronounce as restarau)
My english is not to good and lacks word power--
As far as Neeta Mam is concerned has given a nice gesture and true sporting spirit.we should be proud Of mumbai Indian afer an outstanding performance.
Neeta Ambani Mam has supported its team all throughout it's journey, A real true inspiration for all the indian Women,Hatts of to you Mam
I personally dont Support any particular Team, I mean i dont have any favorite team as such ,EnjoyWatching Cricket and support who ever is giving his best on that particular day, but finaly i should admit, my Wife being a Marathi( Jai Maharashtra) & I being a Upite(Jai Uttar Pradesh) i have slight ------ for Mumbai team, morever Sachin is a player who does like himself called an Indian first before before called anything else.
Anyways Whoever wins i wont be getting any appraisal or Increment in my salary.
Best of luck For both the Finalist
PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA
( There can be thousands of Mehek Sultana)
( kasam Allah ke -( jab kabr me bhi Jayoonge toh tumko hi Yaad pharmayoonge) Original Quote by Mehek Sultana) e
महक मैं तेरे साथ कब्र ने नहीं आ सकता, मैं हिन्दू हूँ ना
अल्लाह के दरबार में मिलेंगे- अमीन