Wednesday, May 12, 2010

मेरें महक नाम कर गयी

POEM- मेरें महक नाम कर गयी
अल्लाह करे तुम ग़ुमनामी के अंधेरो में खो कर रह जयों
और इस शायर का ही नाम बढायो

अल्लाह दरबार में हम यह हिसाब कर लेँगे
कितने नज़्म तेरे थे और कितने मेरे
कही मेरें परछाई तेरे दामन पर ,
या तेरे परछाई भी मेरें दामन पर
होश में भी ना पर जाय

और खून की होली खेल्नेवालो उन दरिंदो को हमारा पता ना चल जाय
और खून से होली खेल्नेवालो उन दरीन्दो को, हमारा पता ना चल जय
और फिर से एक और गोधरा ना हो जाय

महक मैं यह भी जनता हू
टू कई कई नामो से आती है
और मेरा profile देख के जाती है

टू कए कए नामो से आती है
और मेरा profile देख के जाते है

क्या मुझे पता नहीं चलता , उन सब प्रोफाइल से मेरें महक के खूसबू
देखना जरा सावधानी से, कही किस्से को कुछ पता नहीं चल जाये
कम से कम एक घर तो बस कर रह जाय
कम से कम एक घर तो बस कर रह जाय

यह अल्लाहबदी तेरे ही नाम पर लिखता है
यह अल्लाहबदी तेरे ही नाम पर लिखता है
फिर भी मोहब्बत के दास्ताँ में , M से आगे k को रखता है
फिर भी मोहब्बत के दास्ताँ में, M से आगे k को रखता है

भूल जाता है अपने कविता को,
भूल जाता है अपने कविता को
और H को K से भी आगे रखता ही

लोगो को नहीं पता, महक एक मुस्लमान थी
K एक ईशाई थी ,
और जाहीर ही कविता एक हिन्दू थी
पर इन नामो मैं H को नहीं छोर सकता
पर इन नामो मैं H को नहीं छोर सकता
क्या फर्क परता हे, अगर वोह एक सीखनी थी

मैं तो हर धर्म ,हर समाज , हर वर्ग में जाता हूँ
और गुरुद्वारा के लंगर में,कभी कभी आज तक रोटी खाता हू
और गुरुद्वारा के लंगर में, कभी कभी आज तक रोटी खाता हू
मैं टोह सचात धर्म हूँ, मैं सर्व धर्म हू --------------
-----------------
सच मे मैं ही साचात धर्म हूँ, मैं सर्व धर्म हू, और मैं हे साचात धर्म हू --------------
-----------------
उन गुरुवो, मौलवी,पादरियों, और पंडितो की क्या सुनते हो
मेरे सुन
इस धर्म की सुन
इस मीर की सुन
इस फकीर की सुन
इस पुजारी की सुन
सच बात तोह यह है
जब भी कही धर्म शब्द याद किया जायेगा
मेरा भी नाम लिए जायेगा
ऐसे कोई सख्स है, जिसने चारो धर्म जी लिया , एक हे जन्म मे
यह मेरे अल्लाह की मुझे सौग़ात है, और मेरी किस्मत
INCOMPLETE, to be continued.

PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA
( there can be thousand of Mehek sultana)

No comments:

Post a Comment