एक डफ था
निराला अलबेला
कद काठी ऐसा, जैसे बौना भी सर्मता हूँ
सवाल स्वरुप जैसे आस्मां पैर कलि घटा
चाल चीते के, सोच लोमरी का, और दिल डोमरी का
जुबान में ऐसे मिद्थास, जो सहाद न दे पाया
भुगते हुए मेरे जुबान से सुनियी
जुबान में ऐसे मिठास , जिअसे रबरी में भी मिस्सरी डाली गयी हूँ
जीवन रूपी शतरंग का ऐसा खिलाडी, मैंने जीवन भर नहीं देखा
उसके हर चल में शय और मात थी
उसके हर चाल में शय और मात थी
कवी कहता है
कद काठी ऐसा, जैसे बौना भी सर्मता हो
फिर भी वोह निडर था
गर्वात चेरा , सोच औरे से हट के
जीवन रूपी सतरंज का सबसे बड़ा खिलाडी था
अपने रुतबा और दबदबा से, व्हो दुनिया जेताता था
जिअसे घमंड ने चक लिया हो , सत्ता का स्वाद
( Incomplete- To Be continued), I have to leave for field, what to do cant take it as a full time, i wish i could
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