Monday, May 3, 2010

जब लौट चले यमराज

जब लौट चले यमराज - PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA
the poet aim is not to hurt the sentiments or feeling of any particular community,
there are also a sector of people who still workship Yamraj ji, according to Brhma puran, yamarj only follow his duty & responsibilies given to him by Lord Brahma ( The Creator) .

एय थे यमराज मुझे लेना अपने संग संग
मैंने कहा ,अभी मत करो मुझको तंग
itne रात बिरात को ना लेने आया करो,

अभी अभी तो सारे देवताओ के लड़ाई सुलझे के aaiya हूँ
सुबह तक रुक jayoo , पता नहीं फिर कब सुलायोगे,
पता नहीं फिर कितने रातो तक जगोग्योगे
पहले तोह अपना भैसा बहार ही रख
हमरा यहाँ visitors parking allowed nahi है
यम का भैसा , दोसरी जगज़ पार्क कराया

सुबह होने पर मैंने यमराज जी से पूछा
क्या कुछ खयोगी या फिर कुछ piyogea

मैं तो चाय पीता हो हर घंटे में ४/ चार बार
नाश्ते में लेते हो आधा सेर दूध, आधा किलो फल, और एक तरबूज
खाने में गोस्त भुना हुआ, ढेर सारे ----------------( According to hindu mythology , yamrraj is a NON-Vegeteranian)
और कई तरह के पकवान
यमराज बोले, इतने हें या कुछ और
मैंने बोला यह तो सुरुआत है
दिन भर मे दस हाथियों का भोजन एक ही समय में खाता हूँ
और जब कुछ ना मिले तो ग़म भी पि जा ता हू

मुझे भी मधुमेह है यमराज
इस भूज को क्या तुम उठा payoge
मुझे काहा काहा तक साथ लेकर जायोगी

मेरे ही साथ यही रह jayoo
मेरा अपना कोई नहीं है

दोनों मिल के अपने गम बटेंगा
सुना है तेरे दो बची है यमराज
उनको भी येहे बुला ले,
उनको भी मेरे हें घर में बसा ले
जब हमारी भाभी भी रहेंगे
तो खाने की कमी ना होगी
गरम गरम रोटी के तमने भी होगे पूरी,

मेरे दादी को १५ साल लेजाकर क्या खाख रख पाया
आखिर उनसे पानपराग नहीं churwa पाया
वोह तो १ साल से मेरे साथ रहते है
उनका हें पोता ही, क्या ले जा पायेगा
और ले भी गयी तो क्या खिला पायेगा

मेरे जैसे लचर, बैगारैत , भैया को टू कितने दिन अपने पास रख पायेगा

तेरे सारी के सारी दासिया मेरी होंगी,
और अगर हो गया तेरे सत्ता पे काबीज
तो मई हे , कल से यम kahlyoonga

तो सारी रानिया भी मेरे होंगे
तू इस अनहोनी को कब तक बर्दास्त कर पायेगा
वह से यहाँ पे , कुछ हें चोएर =के जायेगा
यमराज मेरे दादी लौटा दे, मेरे अधूरी सपने पूरी कर दे
कुछ देर और बैठ, मेरे कविता तो पूरी होने दे

मैं खुद गमो का मारा हू
मुझे और क्या कोई सताएगा
और क्या खाक ले कर जायेगा

तेरे नरक मे ऐसे कोई सजा है
जो सजा अब तक झेल रहा हूँ

जो रोज बहाता हो, गमो के आशू
वोह नरक को भी पातळ बने देगा

तब भाग चले यमराज
लौट चले यमराज
खुद यम के अखू में वेदना के अंशो थी
सोच रहे थी यम्र्राज
अल्लाहबदी ठीक कहता था
नरक से जाएदा दुःख और पीड़ा , तोह धरती पैर हे है
पैर इस बार मैं क्या दूंगा ब्रह्मा को जवाब
( to be continued)

( To be continued)- sorry for few spellings & Gramitical mistakes, still on the learning phase, and learning from people like manjula, sraddha, sajid, suresh chandra,ambarish ji, amrita, saleh, julie, DR rajeev & DR saroj& most important Dharmendra soni ji who trasslatyed my fist poem when i did not know how to do it, and how cn i forget Avinash S ramdev, few more who are not in my list
PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA

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