Thursday, November 25, 2010

IF U R BAD , I CAN TRY BEING UR DAD

YES TRUST ME FRIENDS..its my OBSERVATION PAST 3 YEARS
only BAD PEOPLE PLAY BAD-MINTON.

people dont bring shuttle at all.
play more than 2 games at a time....schrew, wicked, cuning people want to play the game among Themselves.

REASONS:1)

They Feel there should be a level , the shuttle should move minimum 5 times before getting Dropped at any side.
maine 5 Baar ka Namazi suna hai, aur padha hai, 5 baar ka BADMINTON BAZI NAHEE SUNA.

2) OOOOFICE bhi jana hai, time pey BAD-MINTON BHI GROUP ME KHELNA HAI.
According to them Maza nahee aata hai unko
A maza ke liyee to bahut se cheeza hai, u decide ur choice.well mujhe to sabhi ke saath maza aata hai
3) Have u people paid extra for Ur Annual Membership charges.If yes than take the court , Booth capture the Court, hizak the court, Ruin the Court, and sleep with the Court..

4) I feel everyone has paid the same amount for single anual membership charges, Correct.THEN PLZZZ FOR GOD SAKE LEAVE COURT NO- 4, & can go to any other COURT OF LAW( Court no-1,2,3)or LAST BUT NOT LEAST.

5) IF u people leevl has increased to that extent Please Go to ay other club, thaere r many many other BAD-MINTON COURTS NEAR TO OUR PLACE.NEARSED ONE IN INDIRANGAR, OR MARATHALLI( rS 200 oNLY FOR 2 HOURS) SO rS 50 ONLY FOR PER HEAD.ENJOY BAD-MINTON AS MUCH AS U WANT.

6) OTHERWISE DIRECTLY pLAY IN kANTIVEERA BAD-MINTON INDOOR STADIUM, or play WITH PRAKASH PADUKONE SIR.

SORRY USKE LIYEE UPAR JANA PADEGA AAPKO.

OK PLAY WITH MODI SIR- SORRY AAP JAISE GANDE SOCH WALEY LOG NEY , HE WAS BRUTUALLY MURDERED( tHANKS TO HIS BEAUTIFUL WIFE).
OK LAST OPTION:

TRY PLAYING WITH SAAINA NEHWAL- SOOO SORRY SHE WILL NOT PLAY WITH U..

TUM LOG KI AUKAAT NAHEE HAI, TO PLAY WITH INTERNATIONAL LEVEL PLAYER, AN OLYMIPIAN GOLD MEDALIST, ALL INDIA BAD-MINTON , ALL ENGLAND BAD-MINTON RANK HOLDER .

guys the whole logic is .................

IF U R BAD , I CAN TRY BEING UR DAD


PARVIN ALLAHABADI

Monday, November 22, 2010

ये जा के उसको बताओ - कोई तो मुझे डॉ. मंजुला वत्स्य MAM से बचाओ

Someone Says:- "Missing someone when you are ALONE iz not 'Affection'... But, Thinking of someone even when you are BUZY iz called 'Real Relation'...!!" :-)




Allahabadi Got a Tropic in His Mind to write.



POEM- ये जा के उसको बताओ ***************

कोई तो मुझे डॉ. मंजुला वत्स्य MAM से बचाओ

POET- PARVIN ALLAHABADI



ये जा के उसको बताओ

कोई तो मुझे डॉ. मंजुला वत्स्य से बचाओ

(Consultancy)कंसल्टेंसी चार्ज देते-देते थक चुका हूँ ...



फ़ाइल पे फ़ाइल लिखती हैं...

और जूली, तेरे इस भाई को स्लाईट अब्नोर्मल( Slight abnormal) कहती हैं...

या तो मुझे मेरी झील दिलवाओ...

या डॉ. हरिवंश राय बच्चन साहब,

मुझको मेरी मधुशाला बतलाओ...



क्या सच में मेरी मधुशाला चल के आयेगी...!

या वो मुझको ठेंगा दिखलाएगी....

उसको भी तो settled , House owner, luxor चाहिए होगा...

मेरे पास तो अल्टो LXI है, (Woh Bhi PAPA ke Naam Pe Registered)

या तुम सब लोग मेरा राँची ( कांके) का टिकिट कटवाओ...

उधर जा के ही खेल खेलूंगा...

OffCoarse BAD-MINTON WALA

या तो मुझे मेरी झील दिलवाओ...

या डॉ. हरिवंश राय बच्चन साहब,

मुझको phir sey मेरी मधुशाला Dikhlayo...



बिन शेटल और कार्क के भी बेड-मिन्टन खेलूँगा...

नेट और पार्टनर नहीं भी रहे

अगले एशियाड मे भारत से भी,

बेड-मिन्टन मे एक गोल्ड रहेगा,



और दिल-ए-दर्द देखा...

बाप ना पाया तो क्या हुआ,

एक बाप बनने कि फीलिंग क्या होती है,

ना जान पाया तो क्या हुआ,

पूरे पागलखाने को ही अपनी औलाद बनाऊँगा,

और उन सब पे ही,

जी भर के अपना वात्सल्य लुटाऊँगा,



और हे अल्लाहाबदी,

जब लोग ये पूछेंगे...

इन सारे बच्चों की माँ कौन है.....?

तो मैं श्री हनुमान जी की तरफ हाथ दिखाऊँगा,

जब बिन बियाहा ब्रम्हचारी पिता बन सकते थे,

तो मैं विवाहित बाप क्यों नहीं बन सकता ....!

शायद पागलखाने के सारे लोग,

मेरी बात मान जायेंगे,

शायद पागलखाने के सारे लोग,

मेरी बात मान जायेंगे,

और जो ना माने , वो सारे खुद पागल कहलायेंगे.........

और बाद मे वो सारे के सारे,

मेरे ही पास पागलखाने आयेंगे.....

((Explanation- ranchi because there i have heard FOOD is Good.there, compared to Agra(now Shifted to bareilly),Hope there would have been one in bangalore. I luv Namma banguluru ))

-- प्रवीण अलाहबादी
POET- PARVIN ALLAHABADI

शायरी तो हम भी करते

शायरी तो हम भी करते


This particular Nazm is Dedicated to My wife, My Tuttee ( My Mulgi)



शायरी तो हम भी करते, अगर मुकमल मंजिल होते

शायरी टोह हम भी करते, अगर मुकमल मंजिल होते

एक घरोदा भी ना बस पाया तेरे बगैर



ईट और पत्थर से बना मकानों को घर नहीं कहते

ईट और पत्थर से बना मकानों को घर नहीं कहते



ईट और पत्थर से बना मकानों को घर नहीं कहते

जब तू ही नहीं मेरे ज़िन्दगी में, टोह यह शायरी किसके लिए

तेरे बगैर भी मेरे कोई मंजिल है

यह पता ही नहीं

मेरा तो घर ही टूट गया बसने से पहले



शायरी टोह हम भी करते, अगर मुकमल मंजिल होते

शायरी टोह हम भी करते, अगर मुकमल मंजिल होते



शायर- परवीन अल्लाहबदी & महक सुल्ताना


( There can be thousands of Mehek SULTANA)

ताजमहल में मुमताज़ नहीं है....

tHIS poem i have written on seeing someone beautiful face.


no she is not my RED HOUSE

I love my house, but the girl next door from pakistan.

dont know but 1 snap of hers made me write this lines.

neither the poet is a shanjanhan nor he is looking for any mumtaz.

its only imagination where the poet says that its been years i saw such a face.

mam u know that i ahve written this on you, since i have already commented on ur picture comments

आज समझा मोहब्बत की सबसे बड़ी निशानी

आज समझा मोहब्बत की सबसे बड़ी निशानी

मेरे वतन का ताजमहल अब तक मेरे वतन में ही है



मेरे वतन का ताजमहल अब तक मेरे वतन में ही है

शायद शहाजहां भी यहीं कहीं है

शायद शहाजहां भी यहीं कहीं है



मगर अब यहाँ मुमताज़ नहीं है

अब यहाँ मुमताज़ नहीं है.....



दो बार जंग जीत के भी क्या फायदा

दो बार जंग जीत के भी क्या फायदा

हमारे वतन में कोई ऐसी अब मुमताज़ नहीं है..

हाँ शायद हमारे वतन में कोई ऐसी मुमताज़ नहीं है..



आगरा भी यहीं

ताज भी यहीं

महल भी है...

शाहजहाँ भी यहीं कहीं...

पर अब शायद वहाँ,कोई मुमताज़ नहीं है...



चले गए हमको अब रुसवा करके

क्या हमारे वतन में एक भी ऐसी मुमताज़ नहीं है....!

क्या हमारे वतन में एक भी ऐसी मुमताज़ नहीं है....!

जंग जीत के भी क्या फायदा...

जब ताजमहल में मुमताज़ ही नहीं है....



-प्रवीण इलाहाबादी व महक सुल्ताना

To Be continued.............

POET- PARVIN ALLAHABADI &; MEHEK SULTANA


( there can be thousand of Mehek Sultana)

Friday, November 19, 2010

जब से देखा है तेरी .झील से आंखे,.......मैं जीना सीख गया हू




जब से देखा है तेरी .झील से आंखे,.......मैं जीना सीख गया हू
POET- PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA

तेरी सादगी में क्या बात थी
तेरे सादगी में क्या बात थी
वोह तो पुरी के पुरी अल्लाहाबाद थी

तेरी सादगी में क्या बात थी
तेरे सादगी में क्या बात थी
वोह तो पुरी के पुरी अल्लाहाबाद थी

तू ही गंगा, तू ही दुर्गा, तू ही थी वोह सावत्री
तू ही सीता, तू ही यशोदा, टू ही माता सबरी

तू ही इस एकलव्य के प्रेरणा
तू ही भीम की गदा
और तू ही थी वेदव्यास की कलम

टू हे थी सिकंदर का जूनून
तू हे थी गौरी के इतनी साहस
और मत्स्यगंधा की सुगंध भी तू

जिस मन में बसे चित्र का कोई नाम ना था
वोह तू ही थी
कभी सोचता था , जब काल्पनिक चित्र भी
जीवित हो सकते है
वोह कौन थी

वोह तू ही थी
मेरे लिया तो thames भी तू और ब्रह्मपुत्र भी
कावेरी और कृष्णा भी

भूगोल भी तू
इतहास भी टू
गणित भी टू
और राज्नितिसस्त्र भी

मेरे अपने दर्पण मे भी तू ही
और भीष्म के प्रतिज्ञा भी तू

टू हे नानक देव
टू हे सूरदास के आखे
गुलज़ार के राखी भी टू
और क्रिशन के राधा भी टू

समुन्द्र के शीतल लहरें भी टू ही
समुन्द्र के ज्वर भी टू ही
जब से देखा है , तेरे झील से आखे
मैं जीना सीख गया हू

एक शराबी की shaki भी टू
जादूगर का छूमंतर भी टू
साचात यमराज को हराने वाले सावत्री भी टू
पुत्र मोह में अँधा ,निर्लज ,कायर, असहाय धित्रश्तरे रूपी समाज जैसे लोगो की अकेली पुत्री भी टू

टू हे मेरे ताज है
हां टू हे मेरी मुमताज़ है
मई मकबरा क्यों बनायू तेरी
जब जिन्दा टू मेरे साथ साथ है

सुबह सवेरा मंदिर से आने वाली मधुर घंटियों के आवाज़ भी तू
और मस्जिद से दिल को छु लेने वाली मधुर अज़ान भी टू

सुबह के बदली भी तू हे
और पंच्यी का चल्चालना भी टू
सुबह के आवाज़ करनी वाली कोयल भुई टू

वर्णन देखे
गुलाब भी टू ही
और चंपा और चमेली भी
बेला का भूल भी टू

चन्दन के व्रिस्क से आते खुसबू भी टू
और महक की अधूरी खुसबू भी टू
उसने कहा था
परवीन हमरा धर्म अलग , खान पान अलग
मेरे नवाबी शान भी अलग
एक कोई और तेरे ज़िन्दगी में ऐयेगे
तुझे अपने बनके जायेगा

जब से देखा है , तेरे झील से आखे
मैं जीना सीख गया हू

ईद का चाँद भी तू
उस वसंतसेना के मन में,
रहने वाली पवित्र गीता भी तू
चारुदत्त के मन को,
हर लेने वाली, वो प्राण भी तू

धर्म भी तू
वेद भी तू
पुराण भी तू
वो पाक-ए-कुरान भी तू
एक पीर-पैगम्बर की, मज़ार भी तू

मरनेवाला जिस गंगाजल को तरसे,
वह जल भी तू
माता सीता की प्रतीक्षा भी तू
असंभव को संभव करने वाली भी तू
प्रश्न भी तू, उसका उत्तर भी तू.......

mere maharsahtrain bhi tuu, aur mere woh gugratan bhi tuu...
एक है फिर भी नहीं है, एक नहीं है फिर भी है

मोह भी तू , माया भी तू
और अहिल्या के प्राणों को
एक और मौका देने वाला ऋषि भी तू

माता भी तू पुत्री भी तू
शायद होने वाली मेरी,
अर्धांग्नी भी तू..............
मेरी अंतरात्मा भी तू
और परमात्मा भी तू...
और हे मेरी प्राणों से प्रिय,
इस कवि के प्राण भी अब तू...

कविता का कोई अंत नहीं है
नदी रूप कविता, सागर में ही जा कर मिलते हैं...
मोह भी तू, माया भी तू,
मेरे लिए ब्रम्हा भी तू...
विष्णु भी तू है, और मेरा महेश भी तू है...
गगन,धरती और पाताल भी तू...
जब से देखीं है तेरी .झील से आंखे,.......
मैं जीना सीख गया हूँ...
हा जब से देखीं है तेरी .झील से आंखे,.मैं जीना सीख गया हूँ...
- प्रवीण इलाहाबादी व महक सुल्ताना...
PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA
(there can be Thousand of Mehek Sultana)