Thursday, May 6, 2010

पुष्प की अभिलाषा -(2)


A Tribute to Makhan lal Chaturvedi who wrote this beautiful poem, that i read 22 years back in my school( Class 6)
The poet aim is not to give his comments or prove right or wrong, since here it has been alraedy proved by Late Makhan lal that
Flowers also have feelings within themselves, and they carry some ambtion in life like normal human beings.

फुस्प क अभिलाषा( माखन लाल चतुर्वेदी)

एय फुस्पा क्या तू गुलज़ार से भी बार हो गया
क्या तेरे में जान नहीं है
पर तुने अपने खुसबू( गुलज़ार फवोरिते)से
,पुरे दुनिया को महक(थे ओनली मुस्लिम इन प्रवीन लाइफ)आया है
माखन लाल सच कह गया थे,
पर यह फुस्प यिक प्रश्न पुचो
उत्तर दोगे??
सच बोलना,
क्या तुने कभी गुलज़ार को फुस्पा से नहीं मारा,
सच बोलू
तेरे हर बगिया गुलज़ार हेंई नज़र आती है.
.पकरे गयी,
,अज्ज माखन लाल तो नहीं है,
हा पर इस्वर क दरबार में , जहा हिसाब किताब होता है
माखनलाल क कानो में यह जर्रोर कहूँगा
वोह फुस्पा भी झूठ बोल कर गए थे,
फुस्पो में यह नहीं कहता तुम्हे अपने देश से प्यार नहीं है......

फुस्पो में यह नहीं कहता तुम्हे अपने देश से प्यार नहीं है......
फुस्पो में यह नहीं कहता तुम्हे अपने देश से प्यार नहीं है......
फुस्पो में यह नहीं कहता तुम्हे अपने देश से प्यार नहीं है......

परवीन अल्लाहबदी & महक सुल्ताना

No comments:

Post a Comment