Sunday, April 25, 2010

मोहब्बत के दास्तान जब वक़्त suneyaga

मोहब्बत के दास्तान जब वक़्त सुनेयागा
तब तुम सब को मेरा हे चेहरा याद आएगा
जिस्म बदल जाते है, रूह वाहे रह जाती है
उस वक़्त तुम सब पैर , मेरा हे प्यार का खुमार छाएगा
जो पाप तुने किया , उसके सजा येही भूगत कर जायेगा
या मुसलमानी मुझे माफ़ कर, इस रूह को इस जिस्म से आज़ाद kआर
मोहब्बत के दास्तान जब वक़्त सुनेयागा
तब तुम सब को मेरा हे चेहरा याद आइयेगा


शायर- परवीन अल्लाहबदी एय महक सुल्ताना
(There can be thousand of Mehek Sultana)

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