Friday, April 23, 2010

जब कन्हिया मेरे घर आइयेंगे

जब कन्हिया मेरे घर आयेंगे
स्वागत के होंगे सारी तैयारिया

माता होंगे गदगद, pइत का सीना गौरव से होगा चौरा
जब गूंगेगा कन्हिया के किल्कारिया
आखो से Aअंशु चलके गे
Hएय कन्हिया मेरे घर तुम कब आयोंगा

यिस मरघट जैसे जिंदगी को खुसबू से मेह्कौओगे
मैं नहीं समजता उस सुख के अनुभूति को
Aइक बाप का भी वात्सल्य तरपता है

घी के दिया जलते, घर यिक नयी दुल्हन के तरह सजाते
सारा आक्रोश प्यार बनकर मैं तेरे पैर लुटाता
हे कन्हिया तुम मेरे घर कब आयोगे

कभी सोचता हूँ, तुम मेरे पास आयोंगे या मैं तेरे पास आ जयू
यिक बाप का वात्सल्य तरपता है

जब नहीं सी Pहूल देखता हूँ तो उनको चुना के लिया मचलता हूँ
हेट इस्स्वर मुजे इस सुख से क्यों महरूम रखा
यिक पिता का वात्सल्य तरपता है



मैं घोडा बनता , कन्हिया उस पैर सवारी करता
माता अपने भावानयो से उसे फुकर्ती
उनके नकरी हम मिल के सहते,
जब कन्हिया दूध नहीं पता, तब उन्ही मनाया जाटा
उनके सौ नक्र , नखरा उठाया जाता

उनके सौ नखरा उठाया जाता
हे कन्हिया , जीवन क्या है
Aधरा पल, जैसे मछली बिन जल,

यिस वात्सल्य को मैं कहा लेकर जयो,
बोलो तो मैं तेरे पास आयु
कवी- परवीन अल्लाहबदी और महक सुल्ताना
( there can be thousand of mehek sultana)



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