Saturday, December 25, 2010

PARVIN ALLAHABADI

PARVIN ALLAHABADI


वाह रे खुदा
तेरी इस करिश्में का जवाब नहीं .
तू क्या चीज़ बनाता है
किसे को राम बनाता है
किसे को रहीम बनाता है

तू ही इंसान बनता है
तू ही इंसान बनता है
और तू ही , कभी कभी शैतान भी बनाता है ,

लोगो ने तोह कहा है
ताजमहल शाह्जहा ने मुमताज़ के लिए बनाया था,
लोगो ने तोह कहा है
ताजमहल शाह्जहा ने मुमताज़ के लिए बनाया था

पर शायद लोग यह भूल गए
ताज महल भी , तेरे रहनुमाई के बगैर मुमकिन ना हुआ होगा.

वाह रे खुदा
तेरी इस करिश्में का जवाब नहीं .
तू क्या चीज़ बनता है,

कभी कभी ऐसे बोलते हुए तस्वीर बनाता है
कभी कभी ऐसे बोलते हुए तस्वीर बनाता है

माँ बनाता है, भाई भी बनाता है,
बहन भी बनता है ,
इंसान , हैवान और शैतान भी ,

ज़न्नत भी तू ही नसीब कराता है
वजू करना भी तू हे सिखाता है
और बन्दों को तू झुकना सिखाता है ,

और अर्ज है
कभी कभी शायद ऐसे बोलते हुए तस्वीर भी बना जाता है
कभी कभी शायद ऐसे बोलते हुए तस्वीर बना जाता है

पर शायद, या अल्लाह कई अल्लाह्बादियो को बाप बनाना भूल जाता गया ,
पर शायद, या अल्लाह कई अल्लाह्बादियो को बाप बनाना भूल जाता गया ,
उनको भी ऐसे एक बेटी देना भूल जाता है
और जिन बाप को बेटी देता है
उनमे से कई बाप को रोटी देना भूल जाता है
रोटी देना भूल जाता है,

वाह रे खुदा
तेरी इस करिश्में का जवाब नहीं .
तू क्या चीज़ बनता है,

FROM THE POEM- वाह रे खुदा
PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA
परवीन अल्लाहबदी और महक सुल्ताना